मंगलवार, 23 नवंबर 2010

मानव-मसीहा थे चौधरी रणबीर सिंह

२६ नवम्बर/९७वें जन्म दिवस पर विशेष
मानव-मसीहा थे चौधरी रणबीर सिंह

-राजेश कश्यप
चौधरी रणबीर एक गौरवमयी शख्सियत थे, जिन्हें यदि ‘मानव-मसीहा’ की संज्ञा दी जाए तो कदापि गलत नहीं होगा, क्योंकि उनका पूरा जीवन राष्ट्र-निर्माण, समाज-उत्थान एवं मानव-कल्याण के प्रति ही समर्पित रहा। उनका जन्म २६ नवम्बर, १९१४ को रोहतक (हरियाणा) के सांघी गाँव में महान् आर्यसमाजी एवं देशभक्त चौधरी मातूराम के घर, सुघड़ एवं सुशील गृहणी श्रीमती मामकौर की कोख से तीसरी संतान के रूप में हुआ था।
राष्ट्रपे्रम, राष्ट्रभक्ति, स्वदेश, स्वराज आदि भावनाओं को विरासत में हासिल करने वाले रणबीर सिंह की शिक्षा-दीक्षा भी आर्य समाज की विचारधारा एवं देशभक्ति के वातावरण में पूर्ण हुई। वे मात्र १५ वर्ष की आयु में अपने बड़े भाई के साथ १९२९ के लाहौर अधिवेशन में भी जा पहुंचे थे। उन्होंने वर्ष १९३३ में वै’य हाईस्कूल से दसवीं और वर्ष १९३७ में दिल्ली के रामजस कॉलेज से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। इस समय उनके सामने उनके कैरियर का यक्ष प्रश्न खड़ा था। काफी आत्म-मन्थन के उपरांत उनके पैतृक संस्कारों ने जोर मारा और उन्होंने झट से निर्णय ले लिया कि ‘पहले आजादी, बाकी सब बाद में।’
चौधरी रणबीर सिंह ने १९४० के दशक से ही राष्ट्रीय आन्दोलनों में अपनी सक्रिय भागीदारी दर्ज करवा दी थी। इससे पूर्व वर्ष १९३७ में वे डूमर खां (जीन्द) के एक सम्भ्रान्त परिवार की सुशील कन्या सुश्री हरदेई के साथ विवाह बन्धन में बंध चुके थे। इसके बावजूद वे स्वतंत्रता आन्दोलनों में सक्रिय भागीदारी करते थे। व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान चौधरी रणबीर सिंह पहली बार ५ अप्रैल, १९४१ को जेल क्या गए कि उनके जेल जाने व जेल से छूटने का ही सिलसिला चल निकला। इसी दौरान उन्हें १४ जुलाई, १९४२ को पितृ शोक का भी सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होने कभी भी अपने कदम पीछे नहीं हटाए। उन्होंने अंग्रेजों द्वारा गोली मारने के आदेश को न केवल नजरअन्दाज किया, बल्कि आसौदा की हवाई पट्टी उखाड़कर उन्होंने अपने तेवर और भी तीखे कर लिए थे।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होने ‘हिन्दी-हरियाणा’ नामक साप्ताहिक समाचार पत्र भी निकाला। चौधरी रणबीर सिंह पूरे देश को अपना परिवार मानते थे। उन्होंने वतन की आजादी के लिए अपनी सुध-बुध यहां तक भूला दी थी कि उनके अपने, सगे-सम्बंधी तक भी नहीं पहचान पाए। एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उन्हांेने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान रोहतक, हिसार, अम्बाला, फिरोजपुर, मुल्तान, स्यालकोट तथा केन्द्रीय व बोस्र्टल जेल लाहौर सहित आठ जेलों की यात्राएं करते हुए कुल साढ़े तीन वर्ष की कठोर कैद और दो वर्ष की नजरबन्दी की सजा झेली।
चौधरी रणबीर सिंह ने न केवल स्वतंत्रता प्राप्ति में अपना अनूठा व अमूल्य योगदान दिया, बल्कि स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत भी राष्ट्र के निर्माण एवं उत्थान में अपना विशिष्ट योगदान दिया। सन् १९४७ में देश विभाजन के उपरांत देशभर में भड़के साम्प्रदायिक दंगों को रोकने, सामाजिक सौहार्द पैदा करने, मुसलमानों के पलायन को रोकने, विस्थापित परिवारों को पुन: बसाने में उन्होंने उल्लेखनीय भूमिका निभाकर अपने ‘मानव-मसीहा’ होने की स्पष्ट झलक दिखला दी थी। इन दंगों के दौरान उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की रोहतक व मेवात के घासेड़ा जैसे संवेदनशील गाँवों की यात्रा भी करवाई, और चहुं ओर अमन, चैन व सौहार्द स्थापित करने में सफलता हासिल की।
राष्ट्र के प्रति अटूट, अनुपम, अनूठी, अनुकरणीय सेवाओं, त्याग एवं बलिदानों को देखते हुए चौधरी रणबीर सिंह को १० जुलाई, १९४७ को संयुक्त पंजाब (हरियाणा सहित) भारत की संविधान सभा के सदस्य के तौरपर चुना गया और १४ जुलाई को उन्होंने शपथ ग्रहण की। इसके बाद चौधरी रणबीर सिंह के हर कदम और हर शब्द में मानवीयता की अमिट छाप देखने को मिली, जिनके चलते उन्हें ‘मानव-मसीहा’ कहना, सहज दिखाई देता है। संविधान सभा में उन्होंने देहात (गाँवों) में रहने वाले लोगों के पैरवीकार की पहचान बनाई। उन्होंने ६ नवम्बर, १९४८ को अपने पहले ही भाषण में स्पष्ट कर दिया था, कि "मैं एक देहाती हूँ, किसान के घर पला हूँ और परवरिश पाया हूँ। कुदरती तौरपर उसका संस्कार मेरे ऊपर है। उसका मोह और उसकी सारी समस्याएं आज मेरे दिमाग में हैं।"
चौधरी रणबीर सिंह ने संविधान निर्माण के दौरान वर्ग विहिन समाज के निर्माण, सरकार में शक्ति के विकेन्द्रीयकरण, सिंचाई व बिजली उत्पादन की कारगर योजनाओं के निर्माण, पशु-नस्ल सुधार, गो-वध पर पूर्ण प्रतिबन्ध, हर व्यक्ति के लिए रोटी-कपड़ा और मकान की व्यवस्था करने, आयकर की तर्ज पर कृषि पर ‘कर’ निर्धारण, छोटी जोतों को ‘कर-मुक्त’ करने, फसलों का बीमा करवाने, शहरी शिक्षा व्यवस्था के तुलनात्मक देहात शिक्षा पर जोर देने, लोकसेवा आयोग में ग्रामीण बच्चों को कुछ ढ़ील देने जैसे अनेक ऐतिहासिक मसौदे पे’ा किए।
चौधरी रणबीर सिंह एकमात्र ऐसे नेता थे, जिन्होंने लोकतंत्र के इतिहास में सर्वाधिक सात अलग-अलग सदनों के सदस्य रहे। वे १९४७ से १९५० तक संविधान सभा (विधायी) के सदस्य, १९५० से १९५२ तक अस्थाई लोकसभा के सदस्य, १९५२ से १९६२ तक पहली तथा दूसरी लोकसभा के सदस्य, १९६२ से १९६६ तक संयुक्त पंजाब विधानसभा के सदस्य, १९६६ से १९६७ तक और १९६८ से १९७२ तक हरियाणा विधानसभा के सदस्य और १९७२ से १९७८ तक राज्य सभा के सदस्य के रूप में चुने गए। वे जिस भी पद पर रहे, उन्होंने हमेशा गरीबों, किसानों, मजदूरों, दलितों, पिछड़ों, असहायों, पीड़ितों आदि के कल्याण पर जोर दिया। उन्होने ‘गाँवों में खुशहाली और किसानों के चेहरे पर लाली’ लाने के लिए अनेक प्रयत्न किए। रोहतक-गंोहाना रेलमार्ग, खरखौदा का सुभाष हाई स्कूल, बसन्तपुर, बहुजमालपुर प्राथमिक स्कूल, गाँधी स्मारक गौरड़ आदि सब चौधरी रणबीर सिंह की ही महत्वपूर्ण देनों में से हैं। उन्होने गांव पोलंगी तथा बिधलान में प्राइमरी स्कूलों के निर्माण में भी बड़ी उल्लेखनीय भूमिका निभाई। उन्होने अपने अनूठे सद्प्रयासों के द्वारा रोहतक मैडीकल कॉलेज (अब डीम युनिवर्सिटी) जैसी अनुपम सौंगातें भी हरियाणा प्रदेश को दीं।
चौधरी रणबीर सिंह ने हरियाणा प्रदेश  के नव-निर्माण एवं उसके उत्थान में बड़ा ही उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होने १८ नवम्बर, १९४८ को संविधान सभा में अपने संबोधन के दौरान हरियाणा प्रान्त के निर्माण का मुद्दा बड़े जोर-शोर से उठाया। जब वे १९६२ में कलानौर से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे तो उन्हें पंजाब मंत्रीमण्डल में बिजली व सिंचाई मंत्री बनाया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होने भाखड़ा बांध के निर्माण को पूरा करवाया, जिसे प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने २२ अक्तूबर, १९६३ को राष्ट्र को समर्पित किया। उन्होंने पोंग बांध एवं ब्यास-सतलुज लिंक निर्माण के कार्य को भी शुरू करवाया, जिससे भाखड़ा से ब्यास का पानी मिलने में मदद मिली। इसी दौरान उन्होने पंजाब व उत्तर प्रदेश के बीच हुए यमुना जल के बंटवारे के समझौते में बड़ी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए हरियाणा के हितों की रक्षा की। चौधरी रणबीर सिंह ने किशाऊ और रेणुका बांध योजनाओं की रूपरेखा भी तैयार की, जिसकी स्वीकृति हाल ही में भारत सरकार ने दे दी है। इसके अलावा गुड़गांव नहर योजना भी उन्ही के कार्यकाल के दौरान मंजूर हुई थी। चौधरी रणबीर सिंह की अटूट मेहनत एवं सच्ची लगन की बदौलत ही पंजाब एवं हरियाणा में हरित क्रांति सफल हो पाई थी। लुधियाना में कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना में भी उन्होने प्रशंसनीय योगदान दिया। जब वे हरियाणा के पहले मंत्रीमण्डल में काबीना मंत्री बने, तब उन्होंने हरियाणा की प्रगति एवं समृद्धि में उल्लेखनीय भूमिका अदा की।
चौधरी रणबीर सिंह ने स्वतंत्रता सेनानियों के लिए वर्ष १९७२ में पेंशन मंजूर करवाई, जिसे १९८० में इस पेंशन  योजना को ‘स्वतंत्रता सेनानी सम्मान पेंशन ’ का नया रूप दिया गया। बाद में उन्हीं के सद्प्रयासों से इस पेंशन की राशि में बढ़ौतरी हुईं। चौधरी रणबीर सिंह अखिल भारतीय कांगे्रस कमेटी की कार्यकारिणी के सदस्य व कांग्रेस संसदीय दल (राज्यसभा) के उपनेता भी चुने गए। उनकी ईमानदारी, निष्पक्षता, उदारता एवं कर्मठता को देखते हुए वर्ष १९७७ से १९८० तक हरियाणा प्रदेश  कांग्रेस के अध्यक्ष पद की महत्वपूर्ण जिम्मेवारी सौंपी गई।
चौधरी रणबीर सिंह ने ६५ वर्ष की आयु में सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लिया, और समाजसेवा के क्षेत्र में सक्रिय हो गए। वे हरियाणा सेवक संघ, पिछड़ा वर्ग संघ, भारत कृषक समाज, किसान सभा, हरियाणा विद्या प्रचारिणी सभा आदि सामाजिक संगठनों से जुड़े। उनकी रहनुमाई में स्वतंत्रता सेनानियों के कल्याणार्थ अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी संगठन और अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी संगठन गठित हुए। राष्ट्र के प्रति उनकी अनमोल देनों को देखते हुए कुरूक्षेत्र वि’वविद्यालय कुरूक्षेत्र ने उन्हें वर्ष २००७ में डी.लिट की उपाधि से विभूषित किया। गत वर्ष १ फरवरी, २००९ को यह ‘मानव-मसीहा’ अपनी सांसारिक यात्रा पूरी करके हमेशा के लिए परमपिता परमात्मा के पावन चरणों में जा विराजे।
स्वर्गीय चौधरी रणबीर सिंह दिखावे से लाखों कोस दूर थे। उन्होने जीवन में कभी भी अपनी उपलब्धियों अथवा कार्यों का बखान व प्रचार-प्रसार नहीं करवाया और न ही स्वयं किया। उनका पूरा ‘मानव-मसीहा’ के तौरपर राष्ट्र-निर्माण, समाज-उत्थान एवं मानव-कल्याण के प्रति ही समर्पित रहा। उन्हांेने गरीबों, किसानों, मजदूरों, वृद्धों, महिलाओं आदि समाज के हर वर्ग के कल्याण के लिए अनेक कल्याणकारी कार्य किए। पूरा देश उनके सिद्धान्तों, अनूठे कार्यों, महत्वपूर्ण देनों और दूरदर्शी विचारों का कायल रहा और हमेशा रहेगा।
(नोट : लेखक महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में स्थापित ‘चौधरी रणबीर सिंह शोध केन्द्र’ में शोध-सहायक एवं स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक हैं।)

(राजेश कश्यप)
शोध-सहायक,
‘चौधरी रणबीर सिंह शोध केन्द्र’,
एमडीयू कैम्पस, क्रान्ति चौक,
महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक।
मोबाइल : ०९४१६६२९८८९

शनिवार, 6 फ़रवरी 2010

चौधरी रणबीर सिंह के स्वर्गवास के उपरांत प्रमुख हस्तियों के श्रृद्धांजली सन्देश / संकलन : राजेश कश्यप


श्रीमती प्रतिभा पाटिल, राष्ट्रपति

"चौधरी रणबीर सिंह  के निधन के बारे में जानकर मुझे गहरा दुःख पंहुंचा है. वे एक उत्कृष्ट राजनेता, योग्य प्रशासक, संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य, गरीबों और दबे-कुचले लोंगों के हितों के संरक्षक थे." 



श्री मनमोहन सिंह , प्रधानमंत्री
"स्वाधीनता आन्दोलन में अपने योगदान के कारण श्री रणबीर सिंह को आने वाली पीढियां याद रखेंगी। इसके आलावा संविधान सभा के सदस्य के रूप में उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में जो योगदान दिया उसे भी भुलाया नहीं जा सकेगा।"



श्रीमती सोनिया गाँधी , अध्यक्ष यु.पी.ए.
"प्रिय हरदेई जी, चौधरी रणबीर सिंह के निधन से आपको जो दुःख पहुंचा है, उसकी कल्पना मैं भली-भांति कर सकती हूँ। लेकिन नियति का यही क्रम है और हमें इसे स्वीकार करना पड़ता है। हम उनको कल तक संविधान निर्मात्री के सदस्य के रूप में देख सकते थे और अब वह कड़ी भी टूट गयी। ऐसे देशभक्त को मैं अपनी श्रृद्धांजलि अर्पित करने के साथ-साथ आपके परिवार के सदस्यों के साथ अपनी सहभागिता और संवेदना व्यक्त करती हूँ।"


श्री सोमनाथ चटर्जी , स्पीकर, लोकसभा
"संविधान सभा के सदस्य के रूप में चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा नागरिकों के कल्याण संबंधी हरेक पहल में हमेशा शामिल रहे, जो आगे चलकर देश के नीति निर्धारण सिद्धांत से रूप में सामने आये।"


डा.ए.आर किदवई , राज्यपाल , हरियाणा
"देश ने एक महान स्वतंत्रता सेनानी खो दिया है। चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा ने स्वतंत्रता आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। देश को आज़ादी मिलने के बाद उन्होंने राजनीति के जरिये समाजसेवा की।"

अशोक गहलोत , मुख्यमंत्री , राजस्थान
"चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा ने संविधान निर्माण में अहम भूमिका अदा की। संविधान सभी कि बैठक में अपने पहले ही भाषण में उन्होंने दबे कुचले लोगों कि आवाज उठाई थी।"

ओउम प्रकाश चौटाला, इनेलो सुप्रीमो एवं पूर्व मुख्यमंत्री , हरियाणा
"चौधरी रणबीर सिंह ने उम्र भर सच्चाई की लडाई लड़ी । उनका निधन मेरे लिए व्यक्तिगत नुकसान है , क्योंकि मेरे व मेरे परिवार के उनसे गहरे सम्बन्ध रहे हैं। उनके निधन की पूर्ति होना असंभव है. "


कैप्टन अभिमन्यु , महामंत्री, भाजपा, हरियाणा प्रदेश
"रणबीर सिंह के रूप में देश ने एक बड़ा नेता खो दिया। वे पूर्ण रूप से सामाजिक व्यक्ति थे। जब भी उनसे मिलना होता था, वे हमेशा आशीर्वाद देते थे। "



श्री कुलदीप बिश्नोई , हजकां , सुप्रीमो
"देश को हमेशा  कमी खलती रहेगी। चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा युवा पीढ़ी के लिए आदर्श रहेंगे। हमारी उन्हें सच्ची श्रृद्धांजली यही होगी कि उनके दिखाए रस्ते पर चलें। "



जनरल दीपक कपूर, थल सेना अध्यक्ष
"स्वतंत्रता सेनानियों का देश को आजाद करने में अहम योगदान रहा है। चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा ऐसे ही एक सेनानी रहे हैं। उनकी कुर्बानियों को भुलाया नहीं जा सकता।"


श्री मोती लाल वोरा, हरियाणा प्रभारी कांग्रेस
चौधरी रणबीर सिंह का राजनीतिक जीवन सदैव संघर्षपूर्ण रहा। सामाजिक सेवा भी उनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी।


डा.योगानंद शास्त्री, विधानसभा अध्यक्ष , दिल्ली
महात्मा गाँधी के व्यक्तितव का चौधरी रणबीर सिंह पर खासा प्रभाव पड़ा। उन्ही से प्रभावित होकर वे सत्याग्रह के आन्दोलन में कूदे थे।"


श्री प्रकाश जायसवाल, केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री
"सामाजिक सामाजिक समानता व सामाजिक न्याय चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा के दर्शन का महत्वपूर्ण दृष्टिकोण था। महात्मा गाँधी के सच्चे अनुयायी होने के नाते उनकी दृढ मान्यता थी कि समाज के समान, सर्वांगींण विकास और समुचित विकास के लिए पिछड़ों को प्रगति का प्रतिभागी बनाना आवश्यक है।"



श्री राव इन्द्रजीत सिंह , केन्द्रीय रक्षा राज्य मंत्री
"भारत माँ के इस महान सपूत कि क़ुरबानी, त्याग, बलिदान और निष्ठां हमेशा के लिए स्वर्ण अक्षरों में इतिहास के पन्नों में अंकित रहेगी।"


श्री बलराम जाखड, राज्यपाल , मध्यप्रदेश
"चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा उनके राजनीतिक शिक्षक थे। उनके निधन के बाद उन्हें ऐसा महसूस हो रहा है कि उन्होंने सब कुछ खो दिया है। आज़ादी की लडाई में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।"


श्री हंसराज भारद्वाज, केन्द्रीय विधि मंत्री एवं न्याय मंत्री, भारत सरकार
"चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा के चले जाने से उन्हें व्यक्तिगत नुकसान  हुआ है, क्योंकि वे उनके प्रेरणा स्रोत थे। चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा द्वारा राजनीतिक व सामाजिक क्षेत्र में किये गए कार्यों को हमेशा  याद किया जायेगा।"



श्री राजनाथ सिंह , राष्ट्रीय अध्यक्ष , भारतीय जनता पार्टी
संविधान निर्मात्री समिति के सदस्य चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा के निधन से देश को भारी क्षति हुई है। देश को आजाद करवाने में चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा कि अहम भूमिका रही है और स्वतंत्रता के बाद भी उन्होंने समाज को एक सूत्र में पिरोने का कम किया था।"



श्री दीपेन्द्र सिंह हुड्डा, दिवंगत चौधरी रणबीर सिंह के पौत्र एवं सांसद , रोहतक लोकसभा क्षेत्र
"मुझे इस बात का गर्व है कि उनके दादा ने देश को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उनके दादा ने देश कि आज़ादी के लिए अपने परिवार कि भी प्रवाह नहीं की और पूरा जीवन इसी संघर्ष में लगा दिया।"



डा.हामिद अंसारी, सभापति , राज्यसभा
"श्री हुड्डा सात अलग अलग सदनों के सदस्य रहने के साथ-साथ अनेक सामाजिक संगठनों से भी जुड़े रहे और राष्ट्र निर्माण एवं उत्थान में अहम भूमिका निभाई।"



श्री राज बब्बर , अभिनेता एवं सांसद
"चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा द्वारा किये गए कार्यों से सीख लेकर हम सबको राष्ट्र निर्माण में अपनी आहुति देनी चाहिए। चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा ने अपने परिवार से भी ज्यादा देश को महत्व दिया था।"


स्वामी अग्निवेश , राष्ट्रीय अध्यक्ष, सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधी सभा एवं प्रख्यात आर्यसमाजी नेता
"चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा कि पुण्यतिथि को प्रेरणा अथवा संकल्प दिवस के रूप में मानना चाहिए। आर्य समाज कि वजह से उनका चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा से लम्बे समय तक सम्पर्क रहा। आपातकाल में उन्हें जेल से बहार निकलवाने का कम चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा ने किया था। स्वतंत्रता सेनानियों का कल्याण के लिए चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा का नाम हमेशा  याद किया जायेगा। चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा की सादगी, सरलता, ईमानदारी व राजनीति की कार्यशैली हम सबके लिए एक उदहारण हैं।"

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

हरियाणा की मिट्टी के अनमोल रत्न थे चौधरी रणबीर सिंह

(1 फरवरी 2010 / प्रथम पुण्य तिथि पर विशेष)
हरियाणा की मिट्टी के अनमोल रत्न थे चौधरी रणबीर सिंह

- राजेश कश्यप

विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश भारत अपने गणतंत्र के गौरवमयी ६० वर्ष पूर्ण होने पर गर्व व ख़ुशी से फुला नहीं समा रहा है. यदि एक वर्ष पूर्व १ फरवरी, २००९ को महान स्वतंत्रता सेनानी, हरियाणा की मिट्टी के अनमोल रत्न, बुजुर्ग पीढ़ी के प्रमुख प्रतिनिधि और संविधान सभा के सदस्य चौधरी रणबीर सिंह इस दुनिया को अलविदा न कहकर जाते तो यह ख़ुशी और भी कई गुना अधिक होती.
चौधरी रणबीर सिंह का पूरा जीवन निःस्वार्थ सेवा, सतत संघर्ष एवं त्याग और बलिदानों के ओतप्रोत रहा. उनका जन्म २६ नवम्बर, १९१४ को रोहतक (हरियाणा) के सांघी गाँव में महान आर्यसमाजी एवं देशभक्त चौधरी मातुराम के घर सुघड़ एवं सुशिल गृहणी श्रीमती मामकौर की कोख से तीसरी संतान के रूप में हुआ था. चौधरी मातुराम जात स्कूल के संस्थापक, राष्ट्रीयता के अग्रदूत, लाला लाजपतराय व सरदार भगत सिंह के चाचा सरदार अजित सिंह जैसे अनेक देशभक्तों के साथी और कट्टर आर्यसमाजी थे. उन्होंने महात्मा गाँधी जी के रोलेट-एक्ट विरोधी मुहीम तथा असहयोग आन्दोलन को सफल बनाने में असाधारण योगदान दिया था. जब १७ फरवरी, १९२१ को रोहतक में चौधरी मातुराम के महान व्यक्तित्व, राष्ट्रभक्ति एवं समाजसेवी भावना की मुक्तकंठ से प्रशंसा किये बगैर नहीं रह सके.
राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रभक्ति, स्वदेश, स्वराज आदि शब्दों की गूंज के बीच पले, पढ़े और बड़े हुए चौधरी रणबीर सिंह के अंदर देशभक्ति के जज्बात कूट- कूट कर भरे हुए थे. उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव सांघी के ही प्राइमरी स्कूल में शुरू हुई. बाद में वर्ष १९२४ में इन्हें आर्यसमाजी विचारधारा के कट्टर समर्थक एवं पिता चौधरी मातुराम के परम मित्र भगत फूल सिंह द्वारा भैंसवाल में संचालित गुरुकुल में दाखिल करवा दिया गया. देशभक्ति व आर्यसमाजी संस्कारों की छत्रछाया में चौधरी रणबीर सिंह ने वर्ष १९३३ में वैश्य हाई स्कूल से दसवीं और वर्ष १९३७ में दिल्ली के रामजस कालेज से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की.
स्नातक उपाधि लेने के उपरांत चौधरी रणबीर सिंह से समक्ष आगे के कैरिअर का महायक्ष प्रश्न मुंह बाए खड़ा था. राष्ट्रभक्ति के माहौल में पले-पढ़े चौधरी रणबीर सिंह ने कुछ दिनों के वैचारिक अन्तर्द्वन्द्व के उपरांत दृढ संकल्प लिया की पहले आज़ादी की लड़ाई लड़ी जाएगी और बाद में जिंदगी व कैरिअर के बारे में सोचा जायेगा. ऐसा संकल्प व निश्चय स्वभाविक भी था. क्योंकि बचपन से ही उनके मन में पिता की भांति देशभक्तों के साथ मिलकर आज़ादी की लडाई लड़ने की टीस भरी पड़ी थी. इसी टीस के वशीभूत वे बड़े भाई के साथ वर्ष १९२९ के लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में जा पहुंचे थे. जब आज़ादी की जंग में कूदने के दृढ निश्चय के बारे में उनके पिता को पता चला तो वे गर्व से फूले नहीं समाये और उन्होंने तत्काल सहर्ष अपने लाडले रणबीर को अनुमति दे दी और साथ ही आशीर्वाद दिया की इश्वर तुझे सफलता प्रदान करे.
चौधरी रणबीर सिंह ने १९४० के दशक में ही राष्ट्रीय आंदोलनों में अपनी भागीदारी दर्ज करवा दी थी. इससे पूर्व वर्ष १९३७ में वे डूमर खां (जींद) के एक संभ्रांत परिवार की सुशील कन्या सुश्री हरदेई के साथ विवाह बंधन में बांध चुके थे. पारिवारिक सुख एवं ऐशो-आराम त्यागकर उन्होंने देश में चल रहे स्वतंत्रता आंदोलनों में महत्ती भूमिका निभानी जारी राखी. व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान चौधरी रणबीर सिंह पहली बार ५ अप्रेल, १९४१ को जेल क्या गए कि उनके जेल जाने व जेल से छूटने का ही सिलसिला चल निकला. एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान रोहतक, हिसार, अम्बाला, हिसार, फिरोजपुर, मुल्तान, स्यालकोट तथा केंद्रीय जेल लाहौर सहित आठ जेलों कि यात्रायें करते हुए कुल साढ़े तीन वर्ष कि कठोर कैद और दो वर्ष की नजरबंदी कि सजा झेली. इसी दौरान उन्हें १४ जुलाई, १९४२ को पितृ शोक का भी सामना करना पड़ा. लेकिन उन्होंने कभी भी अपने कदम पीछे नहीं हटाये. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों को जागरूक करने के लिए उन्होंने 'हिंदी-हरियाणा' नामक साप्ताहिक समाचार पत्र भी निकाला और अपनी पैनी कलम से जन-जन में आज़ादी के प्रति गहरी ललक जगाई.
चौधरी रणबीर सिंह ने न केवल स्वतंत्रता प्राप्ति में अपना अनूठा योगदान दिया. बल्कि स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत  देशभर में भड़के जातीय दंगों ने मानवता को शर्मसार करके रख दिया. ऐसे भयंकर संवेदनशील समय में चौधरी रणबीर सिंह ने सकारात्मक भूमिका अदा करने में कोई कसार नहीं छोड़ी. उन्होंने जातीय दंगों को दबाने, सामाजिक सौहार्द पैदा करने, मुसलमानों के पलायन को रोकने, विस्थपित परिवारों को पुनः बसाने आदि के लिए दिन रात एक का दिया.
विश्व के लोकतान्त्रिक इतिहास में चौधरी रणबीर सिंह एकमात्र ऐसे व्यक्ति रहे, जिन्होंने सात अलग-अलग सदनों का प्रतिनिधित्व किया. वे १९४७ से १९५० तक भारतीय संविधान सभा के सदस्य रहे और १९४८ से १९४९ तक संविधान सभा (विधायिका) के सदस्य भी रहे. चौधरी रणबीर सिंह १९५० से १९५२ तक अस्थायी लोकसभा के सदस्य चुने गए. इसके बाद वे १९६२ से १९६६ तक संयुक्त पुनजब विधानसभा तथा १९६६ से १९६७ एवं १९६८ से १९७२ तक हरियाणा विधानसभा के सदस्य रहे. इसके उपरांत वे १९७२ से १९७८ तक राज्य सभा के सदस्य रहे.
चौधरी रणबीर सिंह अपने जीवन में अनेक महत्वपूर्ण पदों पर रहे. वे जिस पद पर भी रहे, उन्होंने हमेशा आम आदमी, देहात, किसान, मजदूर, बलित एवं पिछड़े वर्ग आदि के उत्थान के लिए बड़े अनूठे एवं उल्लेखनीय कार्य किये. संविधान निर्माण के दौरान उन्होंने देहात से सम्बंधित हर पहलू को उठाया. उन्होंने संविधान सभा में अपने पहले ही भाषण में स्पष्ट कर दिया था कि, ''मैं एक देहाती हूँ, किसान के घर पला हूँ और परवरिश पाया हूँ. कुदरती तौरपर उसका संस्कार मेरे उपर है. उसका मोह और उसकी साड़ी समस्याएं आज मेरे दिमाग में हैं.'' चौधरी रणबीर सिंह ने संविधान निर्माण के दौरान वर्गविहीन समाज के निर्माण, सरकार में शक्ति के विकेन्द्रीयकरण, सिंचाई व बिजली उत्पादन की कारगर योजनाओं के निर्माण, पशु-नस्ल सुधर, गो-वध पर पूर्ण प्रतिबंध, हर व्यक्ति के लिए रोटी-कपडा-मकान कि व्यवस्था करने, आयकर कि तर्ज पर कृषि पर 'कर' निर्धारण, छोटी जोतों को 'कर-मुक्त' करने, फसलों का बीमा करवाने, शहरी शिक्षा के तुलनात्मक देहात शिक्षा पर जोर देने, लोकसेवा आयोग में ग्रामीण बच्चों कुछ दिल ढील देने जैसे अनेक ऐतिहासिक मसौदे पेश किये. यह जानकर बड़ी ख़ुशी कि अनुभूति होती है कि संविधान में दिए गए उनके कई सुझावों को राज्य के निदेशक सिधान्तों में शामिल किया गया और कुछ सुझावों पर अमल भी किया गया.
चौधरी रणबीर सिंह ने १९५२ का लोकसभा चुनाव जीतने के उपरांत देहात के गरीबों, किसानों, मजदूरों आदि के कल्याण के लिए दिनरात एक कर दिया. रोहतक-गोहाना रेलमार्ग, खरखौदा हाई स्कूल, बसंतपुर, बहुजमाल्पुर प्राथमिक स्कूल, गाँधी स्मारक गौरड आदि सब चौधरी रणबीर सिंह कि ही महत्वपूर्ण देनों में से हैं. उन्होंने गाँव पोलंगी तथा बिधलान में प्राईमरी स्कूलों के निर्माण में भी बड़ी उल्लेखनीय भूमिका निभाई. दूरे लोकसभा चुनाव जीतने पर भी उन्होंने दीनः-दुखियों के उत्थान के लिए समर्पित होकर काम किया. उन्होंने अपने 'गांवों में खुशहाली और किसानों के चेहरे पर लाली' लाने के लिए अनेक भरसक प्रयत्न किये. उन्होंने अपने अनूठे सद्प्रयासों के द्वारा रोहतक मेडिकल कालिज (अब डीम्ड यूनिवर्सिटी) जैसी अनुपम सौगातें भी हरियाणा प्रदेश को दीं.
चौधरी रणबीर सिंह ने हरियाणा प्रदेश के नव-निर्माण एवं उसके उत्थान में बड़ा ही उल्लेखनीय योगदान दिया. उन्होंने १८ नवम्बर, १९४८ को संविधान सभा में अपन संबोधन के दौरान हरियां प्रान्त के निर्माण के का मुद्दा बड़े जोर शोर से उठाया. जब वे १९६२ में कलानौर से चुनाव जीतकर हरियाणा विधानसभा में पहुंचे तो उन्हें पंजाब मंत्रिमंडल में बिजली व सिंचाई मंत्री बनाया गया. इस पद पर रहते हुए उन्होंने भाखड़ा बाँध के निर्माण को पूरा करवाया, जिसे प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने २२ अक्तूबर, १९६२ को राष्ट्र को समर्पित किया. उन्होंने पोंग बाँध एवं ब्यास-सतलुज लिंक निर्माण के कार्य को भी शुरू करवाया, जिससे भाखड़ा से ब्यास का पानी मिलने में मदद मिली. इसी दौरान उन्होंने पंजाब व उत्तर प्रदेश के बीच हुए यमुना जल के बंटवारे के समझोते में बड़ी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए हरियाणा के हितों कि रक्षा की. चौधरी रणबीर सिंह ने किशाऊ और रेणुका बाँध योजनाओं कि रूपरेखा भी तैयार की, जिसकी स्वीकृति हाल ही में भारत सरकार ने दे दी है. इसके अलावा गुडगाँव नहर योजना भी उन्ही के कार्यकाल के दौरान मंजूर हुई थी. लुधियाना में कृषि विश्वविद्यालय कि स्थापना में भी उन्होंने प्रशंसनीय योगदान दिया. जब वे हरियाणा निर्माण के उपरांत पहले जिस उत्साह के साथ हरियाणा मंत्रिमंडल में काबिना मंत्री बने, तब हरियाणा प्रदेश हर क्षेत्र में पिछड़ा हुआ था. उन्होंने जिस उत्साह के साथ हरियाणा निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभाई थी, उससे कई गुणा उत्साह के साथ हरियाणा कि प्रगति एवं समृधि  में अपनी  अनुकरणीय भूमिका अदा की.
चौधरी रणबीर सिंह ४ अप्रेल, १९७२ को राज्य सभा के सदस्य चुने गए. राज्य सभा में पहुंचकर भी उन्होंने गाँव-देहात के गरीब, मजदूरों, किसानों आदि के कल्याण के लिए कम जरी रखे. उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के लिए वर्ष १९७२ में पेंशन मंजूर करवाई. जिसे प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने १९८० में इस पेंशन योजना को 'स्वतंत्रता सेनानी सम्मान पेंशन' का नया रूप दिया. बाद में उन्हीं के सद्प्रयासों से इस पेंशन कि राशी में बढौतरी हुईं. चौधरी रणबीर सिंह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी के सदस्य व कांग्रेस संसदीय दल (राज्य सभा) के उपनेता भी चुने गए. उनकी ईमानदारी, निष्पक्षता, उदारता एवं कर्मठता को देखते हुए वर्ष १९७७ से १९८० तक हरियाणा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद कि महत्वपूर्ण जिम्मेवारी सौंपी गई.
चौधरी रणबीर सिंह ने ६५ वर्ष कि आयु में सक्रिय राजनीती से सन्यास ले लिया, क्योंकि उनके अंदर राजनितिक क्षेत्र के आलावा सामाजिक क्षेत्र में भी बहुत कुछ करने कि कसक थी. इसी कसक के चलते ही वे पहले से ही हरियाणा सेवक संघ, पिछड़ा वर्ग संघ, भारत कृषक समाज, किसान सभा, हरियाणा विद्या प्रचारिणी सभा आदि सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए थे. वे सक्रिय राजनीती से सन्यास लेने के उपरांत सक्रिय समाजसेवा से जुड़ गए. उनकी रहनुमाई में स्वतंत्रता सेनानियों के कल्याणार्थ अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी संगठन और अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी संगठन गठित हुए. इन संगठनों के प्रयासों से ही १ लाख ६३ हजार स्वतंत्रता सेनानी एवं उनकी विधवाएं सम्मान कि जिन्दगी जी रहे हैं. राष्ट्र के प्रति उनकी अनमोल देनों को देखते हुए कुरुक्षेत्र विश्वविधालय कुरुक्षेत्र ने उन्हें वर्ष २००७ में डी.लिट. कि उपाधि से विभूषित किया.
चौधरी रणबीर सिंह का पूरा जीवन राष्ट्र-उत्थान एवं समाज के नव-निर्माण के प्रति समर्पित रहा. उन्होंने गरीबों, किसानों, मजदूरों, वृद्धों, महिलाओं आदि समाज के हर वर्ग के कल्याण के लिए अनेक कल्याकारी कार्य किये. वे दिखावे से कोसों दूर थे. उन्होंने अपने जीवन में कभी भी अपनी उपलब्धियों अथवा कार्यों का बखान व प्रचार-प्रसार नहीं करवाया और न ही स्वयं किया. पूरा देश उनके सिधान्तों, अनूठे कार्यों, महत्वपूर्ण देनों और दूरदर्शी विचारों का कायल रहा और हमेशा रहेगा. उन्होंने अपने जैसे ही अमूल्य गुण एवं संस्कार अपने सुपुत्र एवं हरियाणा के मुख्यमंत्री चौधरी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और अपने पौत्र एवं वर्तमान रोहतक लोकसभा के सांसद दीपेन्द्र सिंह हुड्डा में प्रवाहित किये, ताकि पूरा देश व समाज निरंतर तरक्की पथ पर अग्रसित रहे. ऐसे महापुरुष को उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर शत-शत नमन.