मंगलवार, 23 नवंबर 2010

मानव-मसीहा थे चौधरी रणबीर सिंह

२६ नवम्बर/९७वें जन्म दिवस पर विशेष
मानव-मसीहा थे चौधरी रणबीर सिंह

-राजेश कश्यप
चौधरी रणबीर एक गौरवमयी शख्सियत थे, जिन्हें यदि ‘मानव-मसीहा’ की संज्ञा दी जाए तो कदापि गलत नहीं होगा, क्योंकि उनका पूरा जीवन राष्ट्र-निर्माण, समाज-उत्थान एवं मानव-कल्याण के प्रति ही समर्पित रहा। उनका जन्म २६ नवम्बर, १९१४ को रोहतक (हरियाणा) के सांघी गाँव में महान् आर्यसमाजी एवं देशभक्त चौधरी मातूराम के घर, सुघड़ एवं सुशील गृहणी श्रीमती मामकौर की कोख से तीसरी संतान के रूप में हुआ था।
राष्ट्रपे्रम, राष्ट्रभक्ति, स्वदेश, स्वराज आदि भावनाओं को विरासत में हासिल करने वाले रणबीर सिंह की शिक्षा-दीक्षा भी आर्य समाज की विचारधारा एवं देशभक्ति के वातावरण में पूर्ण हुई। वे मात्र १५ वर्ष की आयु में अपने बड़े भाई के साथ १९२९ के लाहौर अधिवेशन में भी जा पहुंचे थे। उन्होंने वर्ष १९३३ में वै’य हाईस्कूल से दसवीं और वर्ष १९३७ में दिल्ली के रामजस कॉलेज से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। इस समय उनके सामने उनके कैरियर का यक्ष प्रश्न खड़ा था। काफी आत्म-मन्थन के उपरांत उनके पैतृक संस्कारों ने जोर मारा और उन्होंने झट से निर्णय ले लिया कि ‘पहले आजादी, बाकी सब बाद में।’
चौधरी रणबीर सिंह ने १९४० के दशक से ही राष्ट्रीय आन्दोलनों में अपनी सक्रिय भागीदारी दर्ज करवा दी थी। इससे पूर्व वर्ष १९३७ में वे डूमर खां (जीन्द) के एक सम्भ्रान्त परिवार की सुशील कन्या सुश्री हरदेई के साथ विवाह बन्धन में बंध चुके थे। इसके बावजूद वे स्वतंत्रता आन्दोलनों में सक्रिय भागीदारी करते थे। व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान चौधरी रणबीर सिंह पहली बार ५ अप्रैल, १९४१ को जेल क्या गए कि उनके जेल जाने व जेल से छूटने का ही सिलसिला चल निकला। इसी दौरान उन्हें १४ जुलाई, १९४२ को पितृ शोक का भी सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होने कभी भी अपने कदम पीछे नहीं हटाए। उन्होंने अंग्रेजों द्वारा गोली मारने के आदेश को न केवल नजरअन्दाज किया, बल्कि आसौदा की हवाई पट्टी उखाड़कर उन्होंने अपने तेवर और भी तीखे कर लिए थे।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होने ‘हिन्दी-हरियाणा’ नामक साप्ताहिक समाचार पत्र भी निकाला। चौधरी रणबीर सिंह पूरे देश को अपना परिवार मानते थे। उन्होंने वतन की आजादी के लिए अपनी सुध-बुध यहां तक भूला दी थी कि उनके अपने, सगे-सम्बंधी तक भी नहीं पहचान पाए। एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उन्हांेने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान रोहतक, हिसार, अम्बाला, फिरोजपुर, मुल्तान, स्यालकोट तथा केन्द्रीय व बोस्र्टल जेल लाहौर सहित आठ जेलों की यात्राएं करते हुए कुल साढ़े तीन वर्ष की कठोर कैद और दो वर्ष की नजरबन्दी की सजा झेली।
चौधरी रणबीर सिंह ने न केवल स्वतंत्रता प्राप्ति में अपना अनूठा व अमूल्य योगदान दिया, बल्कि स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत भी राष्ट्र के निर्माण एवं उत्थान में अपना विशिष्ट योगदान दिया। सन् १९४७ में देश विभाजन के उपरांत देशभर में भड़के साम्प्रदायिक दंगों को रोकने, सामाजिक सौहार्द पैदा करने, मुसलमानों के पलायन को रोकने, विस्थापित परिवारों को पुन: बसाने में उन्होंने उल्लेखनीय भूमिका निभाकर अपने ‘मानव-मसीहा’ होने की स्पष्ट झलक दिखला दी थी। इन दंगों के दौरान उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की रोहतक व मेवात के घासेड़ा जैसे संवेदनशील गाँवों की यात्रा भी करवाई, और चहुं ओर अमन, चैन व सौहार्द स्थापित करने में सफलता हासिल की।
राष्ट्र के प्रति अटूट, अनुपम, अनूठी, अनुकरणीय सेवाओं, त्याग एवं बलिदानों को देखते हुए चौधरी रणबीर सिंह को १० जुलाई, १९४७ को संयुक्त पंजाब (हरियाणा सहित) भारत की संविधान सभा के सदस्य के तौरपर चुना गया और १४ जुलाई को उन्होंने शपथ ग्रहण की। इसके बाद चौधरी रणबीर सिंह के हर कदम और हर शब्द में मानवीयता की अमिट छाप देखने को मिली, जिनके चलते उन्हें ‘मानव-मसीहा’ कहना, सहज दिखाई देता है। संविधान सभा में उन्होंने देहात (गाँवों) में रहने वाले लोगों के पैरवीकार की पहचान बनाई। उन्होंने ६ नवम्बर, १९४८ को अपने पहले ही भाषण में स्पष्ट कर दिया था, कि "मैं एक देहाती हूँ, किसान के घर पला हूँ और परवरिश पाया हूँ। कुदरती तौरपर उसका संस्कार मेरे ऊपर है। उसका मोह और उसकी सारी समस्याएं आज मेरे दिमाग में हैं।"
चौधरी रणबीर सिंह ने संविधान निर्माण के दौरान वर्ग विहिन समाज के निर्माण, सरकार में शक्ति के विकेन्द्रीयकरण, सिंचाई व बिजली उत्पादन की कारगर योजनाओं के निर्माण, पशु-नस्ल सुधार, गो-वध पर पूर्ण प्रतिबन्ध, हर व्यक्ति के लिए रोटी-कपड़ा और मकान की व्यवस्था करने, आयकर की तर्ज पर कृषि पर ‘कर’ निर्धारण, छोटी जोतों को ‘कर-मुक्त’ करने, फसलों का बीमा करवाने, शहरी शिक्षा व्यवस्था के तुलनात्मक देहात शिक्षा पर जोर देने, लोकसेवा आयोग में ग्रामीण बच्चों को कुछ ढ़ील देने जैसे अनेक ऐतिहासिक मसौदे पे’ा किए।
चौधरी रणबीर सिंह एकमात्र ऐसे नेता थे, जिन्होंने लोकतंत्र के इतिहास में सर्वाधिक सात अलग-अलग सदनों के सदस्य रहे। वे १९४७ से १९५० तक संविधान सभा (विधायी) के सदस्य, १९५० से १९५२ तक अस्थाई लोकसभा के सदस्य, १९५२ से १९६२ तक पहली तथा दूसरी लोकसभा के सदस्य, १९६२ से १९६६ तक संयुक्त पंजाब विधानसभा के सदस्य, १९६६ से १९६७ तक और १९६८ से १९७२ तक हरियाणा विधानसभा के सदस्य और १९७२ से १९७८ तक राज्य सभा के सदस्य के रूप में चुने गए। वे जिस भी पद पर रहे, उन्होंने हमेशा गरीबों, किसानों, मजदूरों, दलितों, पिछड़ों, असहायों, पीड़ितों आदि के कल्याण पर जोर दिया। उन्होने ‘गाँवों में खुशहाली और किसानों के चेहरे पर लाली’ लाने के लिए अनेक प्रयत्न किए। रोहतक-गंोहाना रेलमार्ग, खरखौदा का सुभाष हाई स्कूल, बसन्तपुर, बहुजमालपुर प्राथमिक स्कूल, गाँधी स्मारक गौरड़ आदि सब चौधरी रणबीर सिंह की ही महत्वपूर्ण देनों में से हैं। उन्होने गांव पोलंगी तथा बिधलान में प्राइमरी स्कूलों के निर्माण में भी बड़ी उल्लेखनीय भूमिका निभाई। उन्होने अपने अनूठे सद्प्रयासों के द्वारा रोहतक मैडीकल कॉलेज (अब डीम युनिवर्सिटी) जैसी अनुपम सौंगातें भी हरियाणा प्रदेश को दीं।
चौधरी रणबीर सिंह ने हरियाणा प्रदेश  के नव-निर्माण एवं उसके उत्थान में बड़ा ही उल्लेखनीय योगदान दिया। उन्होने १८ नवम्बर, १९४८ को संविधान सभा में अपने संबोधन के दौरान हरियाणा प्रान्त के निर्माण का मुद्दा बड़े जोर-शोर से उठाया। जब वे १९६२ में कलानौर से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे तो उन्हें पंजाब मंत्रीमण्डल में बिजली व सिंचाई मंत्री बनाया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होने भाखड़ा बांध के निर्माण को पूरा करवाया, जिसे प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने २२ अक्तूबर, १९६३ को राष्ट्र को समर्पित किया। उन्होंने पोंग बांध एवं ब्यास-सतलुज लिंक निर्माण के कार्य को भी शुरू करवाया, जिससे भाखड़ा से ब्यास का पानी मिलने में मदद मिली। इसी दौरान उन्होने पंजाब व उत्तर प्रदेश के बीच हुए यमुना जल के बंटवारे के समझौते में बड़ी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए हरियाणा के हितों की रक्षा की। चौधरी रणबीर सिंह ने किशाऊ और रेणुका बांध योजनाओं की रूपरेखा भी तैयार की, जिसकी स्वीकृति हाल ही में भारत सरकार ने दे दी है। इसके अलावा गुड़गांव नहर योजना भी उन्ही के कार्यकाल के दौरान मंजूर हुई थी। चौधरी रणबीर सिंह की अटूट मेहनत एवं सच्ची लगन की बदौलत ही पंजाब एवं हरियाणा में हरित क्रांति सफल हो पाई थी। लुधियाना में कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना में भी उन्होने प्रशंसनीय योगदान दिया। जब वे हरियाणा के पहले मंत्रीमण्डल में काबीना मंत्री बने, तब उन्होंने हरियाणा की प्रगति एवं समृद्धि में उल्लेखनीय भूमिका अदा की।
चौधरी रणबीर सिंह ने स्वतंत्रता सेनानियों के लिए वर्ष १९७२ में पेंशन मंजूर करवाई, जिसे १९८० में इस पेंशन  योजना को ‘स्वतंत्रता सेनानी सम्मान पेंशन ’ का नया रूप दिया गया। बाद में उन्हीं के सद्प्रयासों से इस पेंशन की राशि में बढ़ौतरी हुईं। चौधरी रणबीर सिंह अखिल भारतीय कांगे्रस कमेटी की कार्यकारिणी के सदस्य व कांग्रेस संसदीय दल (राज्यसभा) के उपनेता भी चुने गए। उनकी ईमानदारी, निष्पक्षता, उदारता एवं कर्मठता को देखते हुए वर्ष १९७७ से १९८० तक हरियाणा प्रदेश  कांग्रेस के अध्यक्ष पद की महत्वपूर्ण जिम्मेवारी सौंपी गई।
चौधरी रणबीर सिंह ने ६५ वर्ष की आयु में सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लिया, और समाजसेवा के क्षेत्र में सक्रिय हो गए। वे हरियाणा सेवक संघ, पिछड़ा वर्ग संघ, भारत कृषक समाज, किसान सभा, हरियाणा विद्या प्रचारिणी सभा आदि सामाजिक संगठनों से जुड़े। उनकी रहनुमाई में स्वतंत्रता सेनानियों के कल्याणार्थ अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी संगठन और अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी संगठन गठित हुए। राष्ट्र के प्रति उनकी अनमोल देनों को देखते हुए कुरूक्षेत्र वि’वविद्यालय कुरूक्षेत्र ने उन्हें वर्ष २००७ में डी.लिट की उपाधि से विभूषित किया। गत वर्ष १ फरवरी, २००९ को यह ‘मानव-मसीहा’ अपनी सांसारिक यात्रा पूरी करके हमेशा के लिए परमपिता परमात्मा के पावन चरणों में जा विराजे।
स्वर्गीय चौधरी रणबीर सिंह दिखावे से लाखों कोस दूर थे। उन्होने जीवन में कभी भी अपनी उपलब्धियों अथवा कार्यों का बखान व प्रचार-प्रसार नहीं करवाया और न ही स्वयं किया। उनका पूरा ‘मानव-मसीहा’ के तौरपर राष्ट्र-निर्माण, समाज-उत्थान एवं मानव-कल्याण के प्रति ही समर्पित रहा। उन्हांेने गरीबों, किसानों, मजदूरों, वृद्धों, महिलाओं आदि समाज के हर वर्ग के कल्याण के लिए अनेक कल्याणकारी कार्य किए। पूरा देश उनके सिद्धान्तों, अनूठे कार्यों, महत्वपूर्ण देनों और दूरदर्शी विचारों का कायल रहा और हमेशा रहेगा।
(नोट : लेखक महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में स्थापित ‘चौधरी रणबीर सिंह शोध केन्द्र’ में शोध-सहायक एवं स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं समीक्षक हैं।)

(राजेश कश्यप)
शोध-सहायक,
‘चौधरी रणबीर सिंह शोध केन्द्र’,
एमडीयू कैम्पस, क्रान्ति चौक,
महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक।
मोबाइल : ०९४१६६२९८८९