शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

हरियाणा की मिट्टी के अनमोल रत्न थे चौधरी रणबीर सिंह

(1 फरवरी 2010 / प्रथम पुण्य तिथि पर विशेष)
हरियाणा की मिट्टी के अनमोल रत्न थे चौधरी रणबीर सिंह

- राजेश कश्यप

विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश भारत अपने गणतंत्र के गौरवमयी ६० वर्ष पूर्ण होने पर गर्व व ख़ुशी से फुला नहीं समा रहा है. यदि एक वर्ष पूर्व १ फरवरी, २००९ को महान स्वतंत्रता सेनानी, हरियाणा की मिट्टी के अनमोल रत्न, बुजुर्ग पीढ़ी के प्रमुख प्रतिनिधि और संविधान सभा के सदस्य चौधरी रणबीर सिंह इस दुनिया को अलविदा न कहकर जाते तो यह ख़ुशी और भी कई गुना अधिक होती.
चौधरी रणबीर सिंह का पूरा जीवन निःस्वार्थ सेवा, सतत संघर्ष एवं त्याग और बलिदानों के ओतप्रोत रहा. उनका जन्म २६ नवम्बर, १९१४ को रोहतक (हरियाणा) के सांघी गाँव में महान आर्यसमाजी एवं देशभक्त चौधरी मातुराम के घर सुघड़ एवं सुशिल गृहणी श्रीमती मामकौर की कोख से तीसरी संतान के रूप में हुआ था. चौधरी मातुराम जात स्कूल के संस्थापक, राष्ट्रीयता के अग्रदूत, लाला लाजपतराय व सरदार भगत सिंह के चाचा सरदार अजित सिंह जैसे अनेक देशभक्तों के साथी और कट्टर आर्यसमाजी थे. उन्होंने महात्मा गाँधी जी के रोलेट-एक्ट विरोधी मुहीम तथा असहयोग आन्दोलन को सफल बनाने में असाधारण योगदान दिया था. जब १७ फरवरी, १९२१ को रोहतक में चौधरी मातुराम के महान व्यक्तित्व, राष्ट्रभक्ति एवं समाजसेवी भावना की मुक्तकंठ से प्रशंसा किये बगैर नहीं रह सके.
राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रभक्ति, स्वदेश, स्वराज आदि शब्दों की गूंज के बीच पले, पढ़े और बड़े हुए चौधरी रणबीर सिंह के अंदर देशभक्ति के जज्बात कूट- कूट कर भरे हुए थे. उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव सांघी के ही प्राइमरी स्कूल में शुरू हुई. बाद में वर्ष १९२४ में इन्हें आर्यसमाजी विचारधारा के कट्टर समर्थक एवं पिता चौधरी मातुराम के परम मित्र भगत फूल सिंह द्वारा भैंसवाल में संचालित गुरुकुल में दाखिल करवा दिया गया. देशभक्ति व आर्यसमाजी संस्कारों की छत्रछाया में चौधरी रणबीर सिंह ने वर्ष १९३३ में वैश्य हाई स्कूल से दसवीं और वर्ष १९३७ में दिल्ली के रामजस कालेज से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की.
स्नातक उपाधि लेने के उपरांत चौधरी रणबीर सिंह से समक्ष आगे के कैरिअर का महायक्ष प्रश्न मुंह बाए खड़ा था. राष्ट्रभक्ति के माहौल में पले-पढ़े चौधरी रणबीर सिंह ने कुछ दिनों के वैचारिक अन्तर्द्वन्द्व के उपरांत दृढ संकल्प लिया की पहले आज़ादी की लड़ाई लड़ी जाएगी और बाद में जिंदगी व कैरिअर के बारे में सोचा जायेगा. ऐसा संकल्प व निश्चय स्वभाविक भी था. क्योंकि बचपन से ही उनके मन में पिता की भांति देशभक्तों के साथ मिलकर आज़ादी की लडाई लड़ने की टीस भरी पड़ी थी. इसी टीस के वशीभूत वे बड़े भाई के साथ वर्ष १९२९ के लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में जा पहुंचे थे. जब आज़ादी की जंग में कूदने के दृढ निश्चय के बारे में उनके पिता को पता चला तो वे गर्व से फूले नहीं समाये और उन्होंने तत्काल सहर्ष अपने लाडले रणबीर को अनुमति दे दी और साथ ही आशीर्वाद दिया की इश्वर तुझे सफलता प्रदान करे.
चौधरी रणबीर सिंह ने १९४० के दशक में ही राष्ट्रीय आंदोलनों में अपनी भागीदारी दर्ज करवा दी थी. इससे पूर्व वर्ष १९३७ में वे डूमर खां (जींद) के एक संभ्रांत परिवार की सुशील कन्या सुश्री हरदेई के साथ विवाह बंधन में बांध चुके थे. पारिवारिक सुख एवं ऐशो-आराम त्यागकर उन्होंने देश में चल रहे स्वतंत्रता आंदोलनों में महत्ती भूमिका निभानी जारी राखी. व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान चौधरी रणबीर सिंह पहली बार ५ अप्रेल, १९४१ को जेल क्या गए कि उनके जेल जाने व जेल से छूटने का ही सिलसिला चल निकला. एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान रोहतक, हिसार, अम्बाला, हिसार, फिरोजपुर, मुल्तान, स्यालकोट तथा केंद्रीय जेल लाहौर सहित आठ जेलों कि यात्रायें करते हुए कुल साढ़े तीन वर्ष कि कठोर कैद और दो वर्ष की नजरबंदी कि सजा झेली. इसी दौरान उन्हें १४ जुलाई, १९४२ को पितृ शोक का भी सामना करना पड़ा. लेकिन उन्होंने कभी भी अपने कदम पीछे नहीं हटाये. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों को जागरूक करने के लिए उन्होंने 'हिंदी-हरियाणा' नामक साप्ताहिक समाचार पत्र भी निकाला और अपनी पैनी कलम से जन-जन में आज़ादी के प्रति गहरी ललक जगाई.
चौधरी रणबीर सिंह ने न केवल स्वतंत्रता प्राप्ति में अपना अनूठा योगदान दिया. बल्कि स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत  देशभर में भड़के जातीय दंगों ने मानवता को शर्मसार करके रख दिया. ऐसे भयंकर संवेदनशील समय में चौधरी रणबीर सिंह ने सकारात्मक भूमिका अदा करने में कोई कसार नहीं छोड़ी. उन्होंने जातीय दंगों को दबाने, सामाजिक सौहार्द पैदा करने, मुसलमानों के पलायन को रोकने, विस्थपित परिवारों को पुनः बसाने आदि के लिए दिन रात एक का दिया.
विश्व के लोकतान्त्रिक इतिहास में चौधरी रणबीर सिंह एकमात्र ऐसे व्यक्ति रहे, जिन्होंने सात अलग-अलग सदनों का प्रतिनिधित्व किया. वे १९४७ से १९५० तक भारतीय संविधान सभा के सदस्य रहे और १९४८ से १९४९ तक संविधान सभा (विधायिका) के सदस्य भी रहे. चौधरी रणबीर सिंह १९५० से १९५२ तक अस्थायी लोकसभा के सदस्य चुने गए. इसके बाद वे १९६२ से १९६६ तक संयुक्त पुनजब विधानसभा तथा १९६६ से १९६७ एवं १९६८ से १९७२ तक हरियाणा विधानसभा के सदस्य रहे. इसके उपरांत वे १९७२ से १९७८ तक राज्य सभा के सदस्य रहे.
चौधरी रणबीर सिंह अपने जीवन में अनेक महत्वपूर्ण पदों पर रहे. वे जिस पद पर भी रहे, उन्होंने हमेशा आम आदमी, देहात, किसान, मजदूर, बलित एवं पिछड़े वर्ग आदि के उत्थान के लिए बड़े अनूठे एवं उल्लेखनीय कार्य किये. संविधान निर्माण के दौरान उन्होंने देहात से सम्बंधित हर पहलू को उठाया. उन्होंने संविधान सभा में अपने पहले ही भाषण में स्पष्ट कर दिया था कि, ''मैं एक देहाती हूँ, किसान के घर पला हूँ और परवरिश पाया हूँ. कुदरती तौरपर उसका संस्कार मेरे उपर है. उसका मोह और उसकी साड़ी समस्याएं आज मेरे दिमाग में हैं.'' चौधरी रणबीर सिंह ने संविधान निर्माण के दौरान वर्गविहीन समाज के निर्माण, सरकार में शक्ति के विकेन्द्रीयकरण, सिंचाई व बिजली उत्पादन की कारगर योजनाओं के निर्माण, पशु-नस्ल सुधर, गो-वध पर पूर्ण प्रतिबंध, हर व्यक्ति के लिए रोटी-कपडा-मकान कि व्यवस्था करने, आयकर कि तर्ज पर कृषि पर 'कर' निर्धारण, छोटी जोतों को 'कर-मुक्त' करने, फसलों का बीमा करवाने, शहरी शिक्षा के तुलनात्मक देहात शिक्षा पर जोर देने, लोकसेवा आयोग में ग्रामीण बच्चों कुछ दिल ढील देने जैसे अनेक ऐतिहासिक मसौदे पेश किये. यह जानकर बड़ी ख़ुशी कि अनुभूति होती है कि संविधान में दिए गए उनके कई सुझावों को राज्य के निदेशक सिधान्तों में शामिल किया गया और कुछ सुझावों पर अमल भी किया गया.
चौधरी रणबीर सिंह ने १९५२ का लोकसभा चुनाव जीतने के उपरांत देहात के गरीबों, किसानों, मजदूरों आदि के कल्याण के लिए दिनरात एक कर दिया. रोहतक-गोहाना रेलमार्ग, खरखौदा हाई स्कूल, बसंतपुर, बहुजमाल्पुर प्राथमिक स्कूल, गाँधी स्मारक गौरड आदि सब चौधरी रणबीर सिंह कि ही महत्वपूर्ण देनों में से हैं. उन्होंने गाँव पोलंगी तथा बिधलान में प्राईमरी स्कूलों के निर्माण में भी बड़ी उल्लेखनीय भूमिका निभाई. दूरे लोकसभा चुनाव जीतने पर भी उन्होंने दीनः-दुखियों के उत्थान के लिए समर्पित होकर काम किया. उन्होंने अपने 'गांवों में खुशहाली और किसानों के चेहरे पर लाली' लाने के लिए अनेक भरसक प्रयत्न किये. उन्होंने अपने अनूठे सद्प्रयासों के द्वारा रोहतक मेडिकल कालिज (अब डीम्ड यूनिवर्सिटी) जैसी अनुपम सौगातें भी हरियाणा प्रदेश को दीं.
चौधरी रणबीर सिंह ने हरियाणा प्रदेश के नव-निर्माण एवं उसके उत्थान में बड़ा ही उल्लेखनीय योगदान दिया. उन्होंने १८ नवम्बर, १९४८ को संविधान सभा में अपन संबोधन के दौरान हरियां प्रान्त के निर्माण के का मुद्दा बड़े जोर शोर से उठाया. जब वे १९६२ में कलानौर से चुनाव जीतकर हरियाणा विधानसभा में पहुंचे तो उन्हें पंजाब मंत्रिमंडल में बिजली व सिंचाई मंत्री बनाया गया. इस पद पर रहते हुए उन्होंने भाखड़ा बाँध के निर्माण को पूरा करवाया, जिसे प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने २२ अक्तूबर, १९६२ को राष्ट्र को समर्पित किया. उन्होंने पोंग बाँध एवं ब्यास-सतलुज लिंक निर्माण के कार्य को भी शुरू करवाया, जिससे भाखड़ा से ब्यास का पानी मिलने में मदद मिली. इसी दौरान उन्होंने पंजाब व उत्तर प्रदेश के बीच हुए यमुना जल के बंटवारे के समझोते में बड़ी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए हरियाणा के हितों कि रक्षा की. चौधरी रणबीर सिंह ने किशाऊ और रेणुका बाँध योजनाओं कि रूपरेखा भी तैयार की, जिसकी स्वीकृति हाल ही में भारत सरकार ने दे दी है. इसके अलावा गुडगाँव नहर योजना भी उन्ही के कार्यकाल के दौरान मंजूर हुई थी. लुधियाना में कृषि विश्वविद्यालय कि स्थापना में भी उन्होंने प्रशंसनीय योगदान दिया. जब वे हरियाणा निर्माण के उपरांत पहले जिस उत्साह के साथ हरियाणा मंत्रिमंडल में काबिना मंत्री बने, तब हरियाणा प्रदेश हर क्षेत्र में पिछड़ा हुआ था. उन्होंने जिस उत्साह के साथ हरियाणा निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभाई थी, उससे कई गुणा उत्साह के साथ हरियाणा कि प्रगति एवं समृधि  में अपनी  अनुकरणीय भूमिका अदा की.
चौधरी रणबीर सिंह ४ अप्रेल, १९७२ को राज्य सभा के सदस्य चुने गए. राज्य सभा में पहुंचकर भी उन्होंने गाँव-देहात के गरीब, मजदूरों, किसानों आदि के कल्याण के लिए कम जरी रखे. उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों के लिए वर्ष १९७२ में पेंशन मंजूर करवाई. जिसे प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने १९८० में इस पेंशन योजना को 'स्वतंत्रता सेनानी सम्मान पेंशन' का नया रूप दिया. बाद में उन्हीं के सद्प्रयासों से इस पेंशन कि राशी में बढौतरी हुईं. चौधरी रणबीर सिंह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी के सदस्य व कांग्रेस संसदीय दल (राज्य सभा) के उपनेता भी चुने गए. उनकी ईमानदारी, निष्पक्षता, उदारता एवं कर्मठता को देखते हुए वर्ष १९७७ से १९८० तक हरियाणा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद कि महत्वपूर्ण जिम्मेवारी सौंपी गई.
चौधरी रणबीर सिंह ने ६५ वर्ष कि आयु में सक्रिय राजनीती से सन्यास ले लिया, क्योंकि उनके अंदर राजनितिक क्षेत्र के आलावा सामाजिक क्षेत्र में भी बहुत कुछ करने कि कसक थी. इसी कसक के चलते ही वे पहले से ही हरियाणा सेवक संघ, पिछड़ा वर्ग संघ, भारत कृषक समाज, किसान सभा, हरियाणा विद्या प्रचारिणी सभा आदि सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए थे. वे सक्रिय राजनीती से सन्यास लेने के उपरांत सक्रिय समाजसेवा से जुड़ गए. उनकी रहनुमाई में स्वतंत्रता सेनानियों के कल्याणार्थ अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी संगठन और अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी संगठन गठित हुए. इन संगठनों के प्रयासों से ही १ लाख ६३ हजार स्वतंत्रता सेनानी एवं उनकी विधवाएं सम्मान कि जिन्दगी जी रहे हैं. राष्ट्र के प्रति उनकी अनमोल देनों को देखते हुए कुरुक्षेत्र विश्वविधालय कुरुक्षेत्र ने उन्हें वर्ष २००७ में डी.लिट. कि उपाधि से विभूषित किया.
चौधरी रणबीर सिंह का पूरा जीवन राष्ट्र-उत्थान एवं समाज के नव-निर्माण के प्रति समर्पित रहा. उन्होंने गरीबों, किसानों, मजदूरों, वृद्धों, महिलाओं आदि समाज के हर वर्ग के कल्याण के लिए अनेक कल्याकारी कार्य किये. वे दिखावे से कोसों दूर थे. उन्होंने अपने जीवन में कभी भी अपनी उपलब्धियों अथवा कार्यों का बखान व प्रचार-प्रसार नहीं करवाया और न ही स्वयं किया. पूरा देश उनके सिधान्तों, अनूठे कार्यों, महत्वपूर्ण देनों और दूरदर्शी विचारों का कायल रहा और हमेशा रहेगा. उन्होंने अपने जैसे ही अमूल्य गुण एवं संस्कार अपने सुपुत्र एवं हरियाणा के मुख्यमंत्री चौधरी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और अपने पौत्र एवं वर्तमान रोहतक लोकसभा के सांसद दीपेन्द्र सिंह हुड्डा में प्रवाहित किये, ताकि पूरा देश व समाज निरंतर तरक्की पथ पर अग्रसित रहे. ऐसे महापुरुष को उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर शत-शत नमन.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें